गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

विवेकानन्द नीडम ग्वालियर : पतन की पड़ताल

विवेकानन्द नीडम, ग्वालियर के कार्यकर्ता अनिल सरोद और अल्पना सरोदे ने एक दुसरे को भाई-बहन की दृष्टी से स्वीकार कर तद् अनुरूप व्यवहार करने की प्रतिज्ञा की थी। किन्तु दोनों के अनैतिक संबंध प्रकट होने के कारण विवेकानन्द केन्द्र, कन्याकुमारी से उनें निष्कासित किया गया। उसी दौर में ग्वालियर में स्थित विवेकानन्द केन्द की भूमी पर उन्होंने अपना कब्ज़ा जमा लिया। विवेकानन्द केन्द्र, कन्याकुमारी के कार्यकर्ताओं ने इस विरोध में न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लिया, किन्तु अनिल सरोदे और अल्पना सरोदे ने स्थानिक हित संबंधीयों के माध्यम से उनें सफल नहीं होने दिया तब से आज तक उस केंद्र को विवेकानंद नीडम के नाम से प्रचारित किया जाता रहा  है। इस केंद्र के माध्यम से सरोदे दंपती अनेक अनैतिक कार्यों में संलग्न रहकर अपना निजी लाभ साधने का प्रयास करते रहे है। यह लेख उन अपराधों की शृंखला की पोल खोलता हैं. 

छात्रावास के बच्चों का यौन शोषण: 


बच्चो के यौन शोषण में संलिप्त अनिल सरोदे 
लोगों की सहानुभूती और आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए नीडम् में आदिवासी बालकों का छात्रावास सुरू हुआ था। इन बच्चों के 
नाम से प्राप्त दान राशि को बच्चों के विकास में लगाना तो दूर, उल्टा खाने-पीने के मुद्दे पर उने बुरी तरह अपमानित किया जाता रहा। संस्था के हित संबंधीयों द्वारा बच्चों के साथ यौन शोषण के मामले भी सामने आये। अपराधियों पर दण्डात्मक कार्यवाही करने के बजा केन्द्र प्रमुख अनिल सरोदे नें उने संरक्षण प्रदान किया। शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक सुरक्षा के अभाव में कही बच्चें भाग गए। कुछ बच्चों को जबरदस्ती रोकने का प्रयास हुआ। नये बच्चों का अनुभव इससे भिन्न नहीं रहा। अतः वह भी छात्रावास में नहीं टीके और धीरे-धीरे छात्रावास में बच्चों का प्रवेश बहुत कम हो गया। छात्रावास अधिक्षक स्वामी विजयानंद जी ने बच्चों के साथ हो रहें दुव्र्यवहार का विरोध किया। इस मुद्दे पर स्वामी जी के साथ भी बुरा बर्ताव हुआ। जिसके कारण उने यह केन्द्र छोडकर जाना पड़ा।

लड़कियों का व्यापर और हित बाधकों पर मिथ्या आरोपन  : 

यशकांत भारतद्वाज अनिल सरोदे का सहयोगी 
जो लोग आस्थावश संस्थान के साथ जुडे ऐसे अनेकों लोगों के सामने अनिल सरोदे की अंतर्गत कमजोरीयां, भष्ट्राचार और भडवेगीरी से लाभ कमाने की मनोवृत्ति सामने आई। संस्था में निवासरत लडकीयों से तक गलत काम करवाया गया। ऐसा प्रकार सामने आने पर कुछ लोग स्वयं होकर संस्थान से अलग हो गये। संस्था के पूर्व अध्यक्ष एवं जेष्ठ साहित्यिक जगदीश तोमर, गौरव जैन, कु. नंदीनी, डाॅ. शंकरानंद, डाॅ. वि.पी.शाह, राजेन्द्र अग्रवाल आदि कुछ लोगों ने इस बात का विरोध किया। ऐसे लोगों पर झुटे आरोप लगाकर और षडयंत्र कर उनें भी संस्थान से हटा दिया गया। देश में दामिनी कांड होता तो यह लोग कैंडल जलाने के बहाने अपना फोटो खिचवाते हैं। किन्तु अपने ही आश्रय में आई किसी की बेटी के साथ दुर्व्यवहार करने से ये लोग नहीं कतराते है और अपने निजी स्वार्थ के लिए लड़कियों को परोसना शायद यही उनका अध्यात्म है।

भ्रष्टाचार की दिमख: 

संस्था के पूर्व पदाधिकारीयों की शिकायत पर केन्द्र प्रमुख अनिल सरोदे और कोषाध्यक्ष आसाराम प्रजापति को सामाजिक निधि का दुर्उपयोग एवं भष्ट्राचार करने के कारण एक बार न्यायिक कार्यवाही का सामना करना पड़ा था। इसके बावजुद अनिल सरोदे ने संस्था का आर्थिक व्यवहार कभी पारदर्शिता के साथ प्रकट नहीं किया। बाद में सु़त्रों से ज्ञात हुआ और उसके प्रमाण भी मिले, वह यह कि अनिल सरोदे स्वयं इस भष्ट्राचार में संलिप्त रहें। संस्था को प्राप्त राशि का अधिकांक्ष हिस्सा सरोदे के चंद्रपुर स्थित बैंक अकाउन्ट में जमा होता। इसी राशि से उनोनें सन 2007 में चंद्रपुर तथा नागपूर शहर में स्वयं के नाम से भुखंड खरीदें और 65 लाख की लागत से एक मकान भी बनवाया। संस्थान के पूर्व अध्यक्ष श्री जगदिश तोमर ने आर्थिक पारदर्शिता का आग्रह रखा और अनिल सरोदे द्वारा हो रहे भष्ट्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश की। परिणाम स्वरूप उने भी संस्था से अलगकर दिया गया. 

हत्या का षडयंत्रः  


20-22 वर्ष से अधिक कालावधी तक महेश पंत नामक व्यक्ति नीडम् के सेवाकार्य में संलग्न रह । महेश को शराब की लत थी। शराब पीकर वह सरोदे के विरोध में भी बतीयाने लगा। किसी बात को लेकर महेश पंत और संचालक अनिल सरोदे में कुछ कहा सुनी हो गई।अतः उसे रूम में बंद रखा जाने लगा। सरोदे ने उसे केन्द्र से हटाने का बहुत प्रयास किया। किन्तु उसने जाने से साफ मना कर दिया और एक दिन 16 जनवरी 2013 को खुन से सने कपड़ों में, सर पर गहरा घाव और मुच्र्छित अवस्था में वह अपने ही रूम में पाया गया। इस प्रकार महेश की हत्या कर उसे केन्द्र से हटाया गया था। उसके मौत की पुलिस द्वारा निपक्ष जांच होनी चाहिए थी। किन्तु अनिल सरोदे ने यह जांच नहीं होने दी। उसका सारा सामान/डायरीयां/बैंक दस्तावेज आदि अपने कब्जे में लेकर, उसका रूम धोकर सारे सबूत मिटा दिए गए। इस कारन महेश की हत्या में अनिल सरोदे संलिप्त होने के पुक्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सके थे किन्तु इस घटना की सत्यता बयां करते प्रमाण और साक्ष उपलब्ध है।

नीडम में महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार: 

विवेकानन्द नीडम् में कार्यरत यशकान्त भारद्वाज अनिल सरोदे के काले कामों में सहभागी रहा है. एक दिन शराब के नशेमें उसने एक महिला कर्मचारी से दुव्र्यवहार कर डाला। इसकी शिकायत युवती ने केन्द्र प्रमुख अनिल सरोदे से की। किन्तु यशकांत के साथ सरोदे के लाभ के अपने समीकरण थे। इस कारण यह जानते हुए भी कि यशकान्त केन्द्र में शराब पीता हैं । लड़कियों के साथ अश्लील हरकते करता। जिसकी साक्ष केंद में आने वाले रोगी तथा कही छात्र भी दे चुंके है। बावजुद अनिल सरोदे ने यशकांत पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की। उल्टे पीडीत महिला को केन्द्र छोडकर जाने के लिए विवश किया गया। इन लोगों के बीच वह महिला स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाई और संस्था छोड कर चली गई। इससे पुर्व भी संस्था में निवासरत एक नाबलीक लडकी के साथ संस्था के ही कुछ लोगों के द्वारा दुष्कर्म हो चुंका था। अब तक के अपराधों को देख संस्था में कार्यरत सागरसिंह ने न्यायिक अभिलाषा से महिला आयोग को वास्तविकता से अवगत कराया। इसी के चलते यशकान्त भारद्वाज  को मजबूरी वश संस्थान से निकालना पड़ा। यशकांत ने पुलिस कार्यवाही मे शराब पीना, धमकाना और दुव्र्यवहार इस अपराध को स्वीकार करते हुए क्षमापत्र भी लिखा। इस मामले में अनिल सरोदे ने सागर सिंह को धमकाया भी था। अनिल सरोदे तमाम अपराधों की तरह इस अपराध को छुपाये रखना चाहता था,  किन्तु सागरसिंह की वजह से यह अपराध सामने आया.। सरोदे सहित कुछ 3-4 पदाधिकारीयों को टीस थी। इसके चलते सागर कछवा को भी केन्द्र से हटाने का प्रयास हुआ। यहाँ तक की उने जान से मारने की धमकियां भी दी गयी। उसकी शिकायत पुलिस अधिक्षक कार्यलय में दर्ज हुयी है। 
इस प्रकार अनेकों अपराध विवेकान्द नीडम के पतन की कहानी बया करते हैं - जिनकी पड़ताल होनी चाहिए.....

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